SCIENCE PROVED THAT SHE (SHRIMATAJI) IS SOURCE OF COSMIC ENERGY


SCIENCE PROVED IT :SHE IS SOURCE OF COSMIC ENERGY



SCIENTIFICALL PROVED:SOURCE OF COSMIC ENERGY IN MOTHER OF SAHAJAYOGA "SHRIMATAJI "
(THE BIGGEST DISCOVERY EVER)

माँ मैं आपके ऊर्जा क्षेत्र को अभी तक नहीं माप पाया हूँ ......
(श्रीदेवी शक्ति पूजा, न्यूयॉर्क, 8 अक्टूबर 1995)

रूस और ईस्टर्न ब्लॉक में मैं मात्र 4 वर्षों तक रही और आप देखें कि वे लोग सहजयोग के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कितना अनुभव करते हैं। रूस में साइबेरिया तक सहजयोग फैल चुका है। साइबेरिया में वे अपने लिये नहीं जीते है वे केवल अपने आश्रम के लिये जीते हें। वहाँ पर एक जगह है नोवाशिवी जहाँ अधिकतर साइंटिस्ट रहते हैं क्योंकि उनको पहले ज़ार ने और बाद में कम्युनिस्टों ने वहाँ से निकाल दिया था। अब ये सब लोग वहाँ पर आध्यात्मिक ज्ञान की खोज कर रहे हैं कि हम किस प्रकार से आध्यात्मिक प्राणी बन सकते हैं जिसमें न कोई झगड़ा हो ... न कोई मूर्खतापूर्ण बातें हों.......न ही किसी की दबंगई हो और न ही किसी प्रकार का अहंकार हो। मैं वहाँ अभी एक सप्ताह पहले ही गई थी। मेरे आने के एक दिन पहले मेरे पास एक वैज्ञानिक आया । उसकी आँखे समुद्र के समान गहरी और अत्यंत सुंदर थीं।

उसे रूस के बड़े वैज्ञानिकों में से एक माना जाता था। उसकी काफी बड़ी नौकरी थी। वह जब आया तो उसने मेरे बारे में लोगों से कोई खास बातचीत नहीं की। वह केवल मुझसे मिलना चाहता था। जब वह आया तो उसने केवल मेरा हाथ पकड़कर चूमा और मुझे प्रणाम किया। मुझे उसकी आँखो में आध्यात्मिकता की चमक और गहनता दिखाई पड़ी। उसकी उम्र रही होगी यही कोई 35 या 40 वर्ष। मैं उसकी उम्र नहीं बता सकती क्योंकि उसके चेहरे पर एक अद्भुत चमक थी। उसने मुझसे कहा माँ मैं आपके बारे में सब कुछ जानता हूँ। मैंने कहा क्या जानते हो? उसने कहा कि आप इस धरती पर हमको बचाने के लिये परमात्मा का अवतार लेकर आई हैं। मैंने कहा कि ये तुमने कैसे जाना? उसने कहा कि मैंने एक मशीन बनाई है जिसके माध्यम से मैं प्रत्येक व्यक्ति का ऊर्जा क्षेत्र माप सकता हूँ लेकिन निःसंदेह मैं आपके ऊर्जा क्षेत्र को माप नहीं पाया। लेकिन मैंने आपका एक छोटा सा चित्र लेकर उसका ऊर्जा क्षेत्र मापा जो 700 की घात कुछ मिलियन या बिलियन था। इसीलिये मैं इस गणना को नहीं समझ पाया।
जरा सोचिये वह अपने इस प्रयोग के लिये मुझसे आज्ञा लेने के लिये आया था। उसने फिर कहा माँ जरा आप ये काँच छूकर तो देखिये ...... कृपया आप इसे छुयें। वह एक मशीन लेकर आ गया। मैंने उस काँच को छुआ और मशीन ने जोर-जोर से घूमना शुरू कर दिया। मैं भी ये देख कर हैरान रह गई। वह कहने लगा कि माँ आपके छूने मात्र से ही देखिये ये क्या हो रहा है। उसके पास ये एक छोटी सी मशीन थी वह कहने लगा ये एक पोर्टेबल मशीन है। मैंने उससे पूछा तुम्हें किस चीज की परमिशन चाहिये? उसने कहा कि मैं आपके फोटो को सैटेलाइट पर रखना चाहता हूँ और सैटेलाइट से मैं आपके फोटो को इलेक्ट्रोमैगनेटिक फोर्स से प्रक्षेपित करना चाहता हूँ। ब्रह्मांड में जहाँ कहीं भी इसे रखा जायेगा ये कुछ न कुछ परिवर्तन अवश्य ले आयेगा। ये लोगों को बदल देगा.... वहाँ के जीव जंतु और वनस्पतियों को बदल देगा औऱ साथ ही वहाँ की एकॉलॉजिकल समस्याओं को भी बदल देगा। क्या आप इसके लिये मुझे अनुमति देंगी? मैंने कहा हाँ ..... हाँ क्यों नहीं? उस देश में वैज्ञानिकों का स्तर इतना ऊंचा है। मैं नहीं समझती कि यहाँ पर ऐसा कोई वैज्ञानिक ऐसा होगा क्योंकि उनके अहंकार के कारण वे तो बस हवा में उड़ते रहते हैं।

नोवाशिवी में दूसरी चीज जो देखकर मैं हैरान हुई वो थी कि जब एक योगी ने उनको बताया कि हमारे मस्तिष्क में चक्रों की पीठ हैं तो वे चकित हो गये और कहने लगे कि हम इसको भी वैरीफाइ कर लेंगे। हमारे पास ऐसी भी मशीनें हैं। उन्होंने डॉ0 खान को बुलाया और वह वहाँ गये। डॉ0 खान ने वहाँ एक मशीन देखी.... तो उन्होंने कहा कि चलिये अब हम श्रीमाताजी पर अपना चित्त डालते हैं तो पूरा मस्तिष्क का क्षेत्र लाल हो गया। इसके बाद उन्होंने कहा चलिये अब हृदय पर अपना चित्त डालते हैं तो ये क्षेत्र भी लाल बिंदु बन गया ... इसके बाद मूलाधार पर चित्त डालने पर...नाभि के दोनों ओर .. विशुद्धि सभी जगह ये सिद्ध हो गया। उन्होंने ये सिद्ध करके दिखा दिया। अब अमेरिका के लोग उन्हें अपने देश में बुलाना चाहते हैं। लेकिन वे कह रहे हैं कि हम वहाँ आना नहीं चाहते हैं। अब हमें किसी विज्ञान की आवश्यकता नहीं है ... अब हमको परावैज्ञानिक चीजों ..... आध्यात्मिक चीजों में अधिक रूचि हैं। नोवाशिवी में 250 वैज्ञानिक ऐसे हैं। लेकिन मैं पूजा होने के कारण वहाँ जा नहीं पाई।
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माँ ने बताया कि चौदहवाँ भुवन हमारी पृथ्वी है .....
(रूथ फ्लिंट, हमारी परम पावनी माँ की अनुस्मृतियों से साभार)

माँ रोम में हमसे बातचीत कर रहीं थीं। उन्होंने हमको बताया कि जब वो सोती हैं तो उनको तेरह अऩ्य भुवनों या लोकों की रक्षा करनी पड़ती है क्योंकि चौदहवाँ भुवन हमारी पृथ्वी है। उन्होंने कहा कि उनको इन तेरह भुवनों में देखने के लिये जाना पड़ता है कि वहाँ पर सारी व्यवस्था किस प्रकार से चल रही है। इसके बाद उन्होंने हमको ये भी बताया कि जब वे अपने बालों को संवारती हैं तो उस समय वे इन सभी भुवनों को व्यवस्थित करती हैं।

एक बार जब हमने उनसे वर्तमान, भविष्य और अतीत के बारे में पूछा और यह भी पूछा कि यह कैसे कार्यान्वित होता है तथा  कैसे श्री माताजी भविष्य और अतीत के बारे में सब कुछ जानतीं थीं। उन्होंने हमको समझाया कि यह एक ग्रह की तरह है, जो गोल है। यदि आप पृथ्वी से कुछ दूर जाकर इसे देखते  हैं, तो आप एक ही समय में इस ग्रह के कई हिस्से देख पाते हैं। उन्होंने समझाया कि भूतकाल और भविष्य के लिए भी ये ऐसा ही है। अगर वह कुछ दूर जाकर इसको देखती हैं, तो वह अतीत और भविष्य के बारे में जान जाती हैं।

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